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""""""""
परिचय"""""""
🙏🏻
परम वीत
राग एवं
"गीता मर्मज्ञ"
परम श्रद्धेय
स्वामी श्री रामसुखदास
जी महाराज
एक सौ
एक(101)से अधिक वर्ष
की अवस्था
तक"गीता में आए
भगवत भावों"
के प्रचार
में तन
- मन से
जुटे रहे!
व्यक्तिगत
प्रचार से दूर
रहकर भगवान
और उनकी
वाणी "गीता का
प्रचार" करना ही
उनके जीवन
का मुख्य
ध्येय रहा!🙏🏻
इसलिए
अपनी फोटो
खींचवाने,
चरण स्पर्श
करवाने, पूजा करवाने,
चेला - चेली बनवाने,
भेंट स्वीकार
करने, रुपए
और वस्तुओं
का संग्रह
करने, आश्रम
बनाने, टोली बनाने
आदि बातो
से वे
सर्वथा दूर रहे
और इस
प्रकार उन्होंने
लोगों को अपनी
तरफ न लगाकर
"भगवान की तरफ
ही "लगाया!
कम
से कम
समय मे
तथा सुगम
से सुगम
उपाय से
"मनुष्य मात्र का
कैसे कल्याण
हो" ये
ही उनका
एक मात्र
लक्ष्य था!
इस
विषय में
उन्होंने
अनेक नए
- नए विलक्षण
उपायों की खोज
की ! उन्होंने
"गीता" पर एक
विस्तृत
व्याख्या
भी लिखी
थी जो
"साधक - संजीवनी"
नाम से
"गीता प्रेस गोरखपुर"
से प्रकाशित
हुई!
इसके
सिवाय उन्होंने
गीता दर्पण,
गीता माधुर्य,
"गीता - प्रबोधिनी",
गृहस्थ में कैसे
रहें ?, क्या
गुरु बिना
मुक्ति नहीं ?, मानव
मात्र के कल्याण
के लिए,
साधन के
दो प्रधान
सूत्र आदि आदि
अनेक पुस्तकों
की रचना
की, जो
अत्यंत लोकप्रिय
हुई!
🙏🏻उनकी
पुस्तकें
पाठकों के हृदय
पर अमिट
प्रभाव डालती है,
क्योंकि
ये पुस्तकें
विद्वता
के आधार
पर लिखी
हुई नहीं
है , प्रत्युत
अनुभव के आधार
पर लिखी
हुई है!
उनका
आविर्भाव
फाल्गुन
मास वि•स•1960
तिरो
भाव आषाढ़
कृष्ण द्वादशी
वि•स•2062, तदनुसार
3 जुलाई 2005
""""""" श्री स्वामीजी
महाराज के कुछ
मुख्य सिद्धांत""""""
(1)-- मनुष्य
मात्र को "परमात्म
प्राप्ति
का" जन्म
सिद्ध अधिकार है!
(2)-- मनुष्य
जिस वर्ण
- आश्रम , धर्म, संप्रदाय,वेश
- भूषा, देश आदि
में है,
वहीं रहते
हुए वह
अपना कल्याण
कर सकता
है!
(3)-- मनुष्य
मात्र प्रत्येक
परिस्थिति
में अपना
कल्याण कर सकता
है!
(4)-- सांसारिक
वस्तुओं
की प्राप्ति
तो कर्म
करने से
होती है,
पर परमात्मा
की प्राप्ति
कुछ भी
न करने से होती
है!
(5)-- परमात्मा
की प्राप्ति
जड़ता के द्वारा
नहीं होती
प्रत्युत्त
जड़ता शरीर, इन्द्रियां,
मन - बुद्धि
-- इनके त्याग से
होती है!
इस
प्रकार के उनके
विचार साधक - समुदाय
को "चौंका
देने वाले"
होने पर
भी "यथार्थ
मे सत्य"
है! उनका
साहित्य
पढ़ने से और
उनकी वाणी
सुनने से "हमारी
आध्यात्मिक
उन्नति" के विषय
में भ्रमित
धारणाएं
दूर हो
जाती है!
(परम श्रद्धेय
स्वामी जी श्री
रामसुखदास
जी महाराज
का "संक्षिप्त
परिचय" एवं मुख्य
सिद्धांत )
नारायण!
नारायण!नारायण
! नारायण! नारायण!
*श्री मनमोहन जी महाराज
के मुखार
विंद से
वर्णित
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